Urad ki kheti kaise kre 2022-23 : उड़द एक महत्वपूर्ण दिल की धड़कन वाली फसल है जो मानसिक समस्याओं, पेट की बीमारियों और जकड़न जैसे संक्रमणों को ठीक करने में सक्षम है।
उड़द का विकास प्राचीन काल से होता आ रहा है। हमारे शास्त्रों में अनेक स्थानों पर इसका चित्रण मिलता है।
उड़द की सूचना को कौटिल्य के “अर्थशास्त्र और चरक सहिंता” में भी देखा गया है। शोधकर्ता डी कैडोल (1884) और वैविलन (1926) के अनुसार, उड़द की शुरुआत और सुधार भारतीय उपमहाद्वीप में हुआ है।
उड़द की फसल उम्र बढ़ने के बाद उम्मीद से जल्दी तैयार हो जाती है। इसकी उपज खरीफ, रबी और गर्मी के मौसम के लिए उचित फसल है।
Urad ki kheti kaise kre 2022-23
हमारे देश में उड़द का सबसे अधिक उपयोग दिल की धड़कन के रूप में किया जाता है।
उड़द की दाल से कचड़ी, पापड़, बड़ी, बड़े, हलवा, इमरती, पूरी, इडली, डोसा आदि व्यंजन भी तैयार किए जाते हैं।
इसकी भूसी का उपयोग पशु चारे के रूप में किया जाता है। उरद के हरे और सूखे पौधों से सर्वोत्तम जीव आहार प्राप्त होता है। उड़द हृदयस्पर्शी फसल होने के कारण वायु के नाइट्रोजन को स्थिर करके भूमि की उपजाऊ शक्ति का निर्माण करती है।
इसके अलावा उड़द उगाने से पत्तियों और जड़ों के खेत में रहने से मिट्टी में कितना प्राकृतिक पदार्थ बनता है।
उड़द की उपज का उपयोग हरी खाद के रूप में किया जा सकता है। उड़द के बीजों में भी औषधीय गुण होते हैं। मधुमेह, असमय डिस्चार्ज इसके दुष्प्रभावों में से हैं।
उपयोगिता
भोजन का प्राथमिक भाग प्रोटीन है, जो मांस, मछली, अंडे और दूध से प्राप्त होता है। भारत में निवासियों की संख्या का बड़ा हिस्सा शाकाहारी प्रेमी होने के कारण, प्रोटीन विशेष रूप से बीट से प्रदान किया जाता है।
उड़द की दाल में सभी दिल की धड़कनों में सबसे अधिक प्रोटीन सामग्री होती है। इसलिए उड़द की दाल का खाने में अहम स्थान है।
इसमें प्रोटीन के अलावा कई तरह के जरूरी पोषक तत्व और खनिज लवण भी पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं. उड़द के पोषक मूल्य तालिका-1 में दिए गए हैं।
वातावरण –
उड़द के लिए उमस भरी और गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। उड़द की फसल की अधिकांश स्थिति प्रकाशकाल के प्रति संवेदनशील होती है।
विकास के लिए 25-30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त है। उड़द प्रभावी रूप से 700-900 मिमी वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होता है। प्रस्फुटन अवस्था में अतिवृष्टि विनाशकारी होती है।
पकने की अवस्था में पानी बरसने से अनाज खराब हो जाता है। उड़द के लिए क्षेत्र का वातावरण बहुत अच्छा है। उड़द का खरीफ एवं ग्रीष्म ऋतु में विकास संभव हो।
जमीन का चुनाव और योजना
उड़द विभिन्न प्रकार की भूमि में विकसित होता है। उड़द के लिए हल्की बलुई, दोमट या मध्यम प्रकार की मिट्टी जिसमें अधिक बर्बादी हो, अधिक उपयुक्त होती है।
पी.एच. मान 7-8 के बीच की भूमि उड़द के लिए उत्तम होती है। अम्लीय और घुलनशील मिट्टी उचित नहीं है।
मूसलाधार बारिश शुरू होने के बाद, खेत को समतल करने के लिए कुछ बार हल या हैरो चलाएँ।
पौधों का विकास उस स्थिति में बहुत अच्छा होता है जब रोपण वर्षा शुरू होने से पहले समाप्त हो जाता है।

बीज की मात्रा एवं बीज उपचार-
उड़द का बीज प्रति वर्ग भूमि 6-8 किग्रा की दर से लगाना चाहिए। बोने से पहले प्रति किलो बीज के लिए थीरम 3 ग्राम या डाइथेन एम-45 2.5 ग्राम से बीज का उपचार करें।
ट्राइकोडर्मा कवकनाशी का प्रयोग प्राकृतिक बीज उपचार के लिए 5 से 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से किया जाता है।
पौधरोपण का समय और तकनीक-
पर्याप्त वर्षा होने पर वर्षा ऋतु या हाल ही में जून के आगमन पर रोपण समाप्त हो जाता है।
इसे हार्ड नॉच या टिफ़ान से करें, कॉलम की दूरी 30 सेमी है। क्या अधिक है, एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 10 सेमी है। बीज 4-6 सें.मी. की गहराई पर बुआई करें

मल और खाद की मात्रा –
प्रत्येक भाग भूमि के लिए 8-12 किग्रा नत्रजन तथा 20-24 किग्रा फॉस्फोरस तथा 10 किग्रा पोटाश दें।
खाद की पूरी मात्रा को रोपण के समय बीज के ठीक नीचे कतारों में डाल देना चाहिए। बीट फसलों में सल्फर युक्त खाद जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, अमोनियम सल्फेट, जिप्सम आदि का प्रयोग करना चाहिए।
विशेष रूप से गंधक की कमी वाले क्षेत्रों में प्रत्येक भाग के लिए 8 किग्रा गंधक गंधक युक्त खाद के माध्यम से दें।
पानी की व्यवस्था
यह मानते हुए कि सामान्य फूल आने और बीज भरने के समय खेत में नमी नहीं है, एक पानी की व्यवस्था की जानी चाहिए।
निराई –
खरपतवार आश्चर्यजनक रूप से फसलों को हानि पहुँचाते हैं। इस प्रकार भरपूर उत्पादन के लिए निराई, गुड़ाई, कुल्पा और डोरा आदि का उचित उपयोग करना चाहिए
तथा अन्य आधुनिक विश्राम करने वालों का प्रयोग करना चाहिए। बाकी जल्लाद वैसलिन 800 मिली।
1000 मिली। जमीन के प्रत्येक हिस्से के लिए 250 लीटर पानी मिलाकर और गंदगी फैलाने से पहले इसे गीले खेतों पर छिड़कने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।
समन्वित वर्मिन उड़द में बोर्ड
क्ली वेटिक (बग कीट)-
यह उड़द और मूंग की एक महत्वपूर्ण विनाशकारी उपद्रव है। इस कीट की स्कारब और वयस्क दोनों अवस्थाएँ हानिकारक होती हैं।
खौफनाक कीट रात के समय सक्रिय रहते हैं और पत्तियों पर छेद बनाकर नुकसान पहुंचाते हैं। यदि गंभीर आक्रमण की घटना होती है,
तो एक ही पत्ते पर 200 से अधिक उद्घाटनों को ट्रैक किया जा सकता है। गर्मी में बोई उड़द, मूंग एच
इस जलन से ज्यादा प्रभावित होते देखा गया है। इसके कीट भूमिगत रहकर उड़द, मूंग, ग्वार आदि की जड़ों व तनों को हानि पहुँचाते हैं।
उड़द की जड़ों में छेद करके कीड़े मुख्य रूप से घुस जाते हैं और खाकर अंगों को नष्ट कर देते हैं। जिससे प्रति पौधा 25 से 60 प्रतिशत गुच्छे नष्ट हो जाते हैं।
इस प्रकार, पौधों की नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह एक विशाल गिरावट का संकेत देता है। बड़े हुए कीट धारीदार भूरे रंग के होते हैं जबकि ग्रब भूरे सफेद रंग के होते हैं।
लीफ स्टाइलर (कैटरपिलर)-
वयस्क बग के पंख पीले होते हैं। कैटरपिलर हरे हैं और सिर पीला है। इस उपद्रव के कैटरपिलर मुख्य रूप से चोट पहुंचाते हैं।
कैटरपिलर पत्तियों को ऊपरी सिरे से मध्य भाग की ओर ढकते हैं। ये कीट अनेक पत्तियाँ रहकर जाल भी बनाते हैं।
है।
सूंडियां इन टूटे हुए हिस्सों के अंदर रहती हैं और पत्तियों के हरे पदार्थ (क्लोरोफिल) को खाती हैं, जिससे पत्तियां पीली सफेद होने लगती हैं। कभी-कभी नुकसान गंभीर होने पर सिर्फ नतीजों की नसें रह जाती हैं।
सफेद मक्खी
इस कीट के वयस्क और नवजात शिशु दोनों चरण विनाशकारी होते हैं। वे थोड़े पीलेपन के साथ किस्म में सफेद होते हैं। किशोर पंखहीन होते हैं जबकि वयस्क पंखों वाले होते हैं।
दोनों पत्तियों की निचली सतह पर रहकर रस चूसते रहते हैं, जिससे पौधा कमजोर होकर वाष्पित होने लगता है। यह बग पौधों को अपने थूक से संक्रमण भेजता है और “पीला मोज़ेक” नामक बीमारी फैलाने का प्रयास करता है।
यह इस बात का औचित्य है कि यह एक अत्यंत विनाशकारी बग क्यों बन जाता है। रोग लगने पर पीली पच्चीकारी का नियंत्रण करना चाहिए।
पीली बीमारी से प्रभावित पौधों को हटाकर नष्ट कर दें और फसल को डाईमेथोएट 30 ईसी से उपचारित करें। 2 मिली./ली. इसे पानी में मिला कर छिड़काव करने से “पीला मोज़ेक” संक्रमण का एक प्रभावी उपचार होता है।
नतीजतन, इस संक्रमण का प्रतिकार विशेष रूप से स्वस्थ पौधों को इसके हमले से बचाकर ही संभव होना चाहिए। मध्य प्रदेश में उड़द-मूंग को सबसे ज्यादा नुकसान सफेद मक्खी से होने वाले रोग “येलो मोजेक” से होता है।
दरअसल, कम संख्या में भी यह बग बेहद हानिकारक है। इस फसल में सफेद मक्खी द्वारा उपज में 10 से 40 प्रतिशत की कमी रखी गई है।
लीफ ड्रिल कैटरपिलर
विभिन्न प्रकार की इल्लियां उड़द और मूंग की पत्तियों को हानि पहुँचाकर उपज पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
इसमें बिहार फरी कैटरपिलर, रेड ब्रिसली कैटरपिलर, टोबैको कैटरपिलर, सेमी-राउंड (सेमीलुक) कैटरपिलर आदि पत्ती खाने वाले कैटरपिलर चोटिल होते हैं। बिहार में तेज कैटरपिलर 10 साल का सबसे बड़ा नुकसान है।
बिहार प्यारे कीड़ा-
इस कीट का वयस्क मध्यम आकार का होता है और वयस्क के पंख भूरे पीले रंग के होते हैं। वयस्क पंख में लाल छायांकित किनारे होते हैं और अग्र पंख जोड़ों पर काले धब्बे होते हैं।
इल्लियां छोटी अवस्था में समूहों में रहकर पत्तियों को खाती हैं, जिसके कारण पत्ती पर जाल जैसी आकृति बन जाती है। भारी सूंडियां उपज में फैल जाती हैं और पत्तियों को व्यापक नुकसान पहुंचाती हैं।
इनके शरीर पर घने बाल या फर होते हैं। जिसके कारण इन्हें “कवर बग्स” भी कहा जाता है। अत्यधिक फैलाव की स्थिति में पौधे पत्ते रहित हो जाते हैं और केवल कंकाल के रूप में रह जाते हैं।
इनके भड़कने के कारण पौधे में दाने कम होते हैं और उपज कम हो जाती है।

पदार्थ कीटनाशकों में उपयोग के लिए प्रस्ताव
1. कीट विष कंपाउंड की व्यवस्था करते समय उसमें चिपचिपा (चिपचिपा) पदार्थ अवश्य डालें ताकि कीट स्प्रे पत्तियों और पौधों से बहने वाले पानी और धारा में न मिलें।
2. दिन की शुरुआत में लगातार धूल (डस्ट) कीट विष छिड़कें।
3. विनिमय मार्गदर्शन के अनुसार कम से कम दो बग स्प्रे को मिश्रित न करने का प्रयास करें। कीट अवरोध को रोकने के लिए लगातार एक मौसम से दूसरे मौसम में बग स्प्रे को घुमाते रहें।
4. हमेशा कीट विष घोल को पहले किसी कटोरी या मग में बना लें और फिर स्प्रेयर टैंक में पानी के साथ मिला दें। टैंक में बग स्प्रे कभी न डालें।
समन्वित बीमारी उड़द में अधिकारियों की प्रमुख बीमारी
1. पीले धब्बे की बीमारी
इस रोग की शुरूआती अवस्था में पत्तियों पर धब्बों के रूप में धब्बे दिखाई देते हैं। बाद में धब्बे विकसित होकर पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं।
जिससे पत्तियों के साथ-साथ पूरा पौधा पीला पड़ जाता है। यह मानकर कि इस रोग का पता शुरूआती चरण में चल जाता है, उपज में शत-प्रतिशत हानि संभव है। यह बीमारी मिट्टी, बीज और संपर्क के माध्यम से होने वाले संक्रमण से नहीं होती है।
जबकि यह सफेद मक्खी द्वारा फैलता है जो एक चूसने वाला कीट है।
2. पत्ती मुड़ने का संक्रमण या बुरी तरह से मुड़ी हुई पत्ती की बीमारी –
यह भी एक वायरल बीमारी है। रोग के दुष्प्रभाव रोपण के एक महीने बाद दिखाई देते हैं। और तो और, पौधे की तीसरी पत्ती पर दिखाई दे। पत्तियां सामान्य से अधिक विकसित होती हैं
और झुर्रीदार या मुड़ी हुई और अप्रिय हो जाती हैं। अस्वास्थ्यकर पौधे में पुष्पक्रम पुष्पगुच्छ के समान प्रतीत होता है। फसल पकने के घंटे तक भी इस बीमारी में पौधे हरे रहते हैं। इसके साथ ही सी
3. मोज़ेक मोटल संक्रमण
इस संक्रमण को कुर्बर्ता भी कहते हैं और इसका प्रकोप मूंग की अपेक्षा उड़द पर अधिक होता है। यह रोग उपज में भारी नुकसान करता है। शुरूआती दुष्प्रभाव पत्तियों पर हल्के हरे धब्बों के रूप में शुरू होते हैं, बाद में पत्तियां सिकुड़ कर रेंकदार हो जाती हैं। यह संक्रमण बीज द्वारा भेजा जाता है।
4. पत्ता मरोड़
यह बीमारी पौधों की शुरुआती अवस्था से लेकर अंतिम अवस्था तक दिखाई दे सकती है। मुख्य दुष्प्रभाव आम तौर पर युवा पत्तियों के किनारों पर, क्षैतिज शिराओं और उनकी शाखाओं के आसपास क्लोरोसिस की उपस्थिति है।
दूषित पत्तियों के सिरे नीचे की ओर मुरझा जाते हैं और यह नाजुक हो जाती है। अगर ऐसी पत्तियों को उंगली से हल्का सा झटका दिया जाता है, तो यह डंठल के साथ नीचे गिर जाती है। यह भी एक वायरल संक्रमण है जो थ्रिप्स बग द्वारा फैलता है।
5. सर्कोस्पोरा लीफ स्पॉट संक्रमण
पत्तियों पर मटमैले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। जिसकी बाहरी सतह भूरी लाल है। ये धब्बे पौधे की शाखाओं और केस पर भी पड़ते हैं। आदर्श परिस्थितियों में, ये धब्बे आकार में बड़े हो जाते हैं
और रोगग्रस्त पत्तियाँ खिलने और मामले की व्यवस्था के समय गिर जाती हैं। अच्छे मौसम में रोग गंभीर रूप धारण कर लेता है जिससे बीज भी दूषित हो जाते हैं।
6. श्याम वर्ण (एन्थ्रेक्नोज)-
उड़द का यह संक्रमण छूत की बीमारी है। संक्रमण के दुष्प्रभाव पौधे के सभी ईथर भागों और विकास के किसी भी चरण में दिखाई दे सकते हैं। पत्तियों और इकाइयों पर हल्के भूरे से हल्के भूरे, गहरे गोल धब्बे दिखाई देते हैं। धब्बों का केंद्र बिंदु विविधता में फीका होता है और किनारे हल्के लाल रंग के होते हैं। बीमारी के अत्यधिक संदूषण के कारण, अस्वास्थ्यकर पौधा सिकुड़ जाता है और मर जाता है। यह मानते हुए कि बीज के अंकुरण की शुरुआत में रोग का प्रकोप होता है, तब बीज का आवरण झुलस जाता है।
7. चारकोल (मैक्रोफेमिना) सियरिंग
यह भी छूत की बीमारी है। जो Macrophomina fascioliana से है। समन्वित डेढ़ माह की उपज में तने के निचले भाग से फेसिओलियाना जैसे सफेद फफोले बन जाते हैं।
समन्वित डेढ़ माह की फसल में तने के निचले भाग में सफेद फफोले जैसे दुष्प्रभाव दिखाई देते हैं। इसके बाद वे मिट्टी के रंग की धारियों में बदल जाते हैं और ऊपर की ओर बढ़ते हैं।
अस्वास्थ्यकर पौधों का विकास बाधित होता है,
जिससे उन्हें एक बाधा दिखाई देती है। पत्तियों का रंग हल्का हरा और चित्तीदार हो जाता है और आकार में घट जाता है। दरअसल, बीमार पौधे की साधारण पत्तियाँ भी कहीं से भी गिरने और वाष्पित होने लगती हैं।
रोग के कारण पौधे का पुष्पन और अंकुरण व्यवस्था प्रभावित होती है। जब अस्वास्थ्यकर पौधों के कॉलर क्षेत्र के नीचे ऊपर की ओर देखा जाता है, तो एक सुर्ख मलिनकिरण ध्यान देने योग्य होता है, जबकि जड़ के आंतरिक भागों में एक सफेद रंग की संरचना पाई जाती है।
8. चुर्णिता असिता-
इस बीमारी में सबसे पहले पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद महीन विकास देखा जाता है, जो संक्रामक संक्रमण और परजीवी क्रॉस सेक्शन होते हैं। रोग के बढ़ने के साथ-साथ संक्रमण के धब्बे भी बढ़ जाते हैं, जो गोल हो जाते हैं और पत्तियों की निचली सतह पर भी फैल जाते हैं।
पत्तियों की दोनों बाहरी परत पर सफेद चूर्ण फैल जाने से रोग के अत्यधिक भड़कने के कारण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है। गतिविधि प्रभावित होती है।
रोग की पत्तियाँ पीली होकर गिरने लगती हैं। बीमारी से प्रभावित पौधे तेजी से परिपक्व होते हैं, जिससे भारी नुकसान हो रहा है।
9. जड़ सड़न और पत्ती अभिशाप
यह बीमारी राइजोक्टोनिया सोलानी जीव से होती है। यूनिट स्टेज में इसका एपिसोड सबसे चरम है। अंतर्निहित चरण में, यह सूक्ष्मजीव क्षय, बीज संकट और जड़ क्षय के दुष्प्रभाव दिखाता है। बीमार पौधों की पत्तियाँ पीली हो जाती हैं और उन पर भूरे रंग के अनियमित आकार के धब्बे दिखाई देने लगते हैं।
कुछ समय बाद, ये छोटे-छोटे धब्बे आपस में मिल जाते हैं और पत्तियों पर एक विशाल क्षेत्र में दिखाई देने लगते हैं। पत्तियाँ झटके से गिरने लगती हैं। बेसल और पानी वाला हिस्सा काला हो जाता है और संक्रमित हिस्सा पट्टीदार हो जाता है
बिना किसी समस्या के बंद। संक्रमित पौधे सूखकर वाष्पित हो जाते हैं। इन पौधों के आधार को फाड़ने पर अन्दर के भाग में लाली दिखाई देती है।
10. बैक्टीरियल लीफ स्कॉर्ड
यह संक्रमण जैन्थोमोनास फेसिओली नामक जीवाणु द्वारा होता है। रोग के दुष्प्रभाव पत्तियों की ऊपरी सतह पर मिट्टी के रंग के सूखे उभरे हुए धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं।
जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है, कई छोटे उभरे हुए धब्बे एक हो जाते हैं। पत्तियाँ पीली हो जाती हैं और झड़ जाती हैं। पत्तियों की निचली सतह लाल हो जाती है। संक्रमण के दुष्प्रभाव तने और पत्तियों पर भी दिखाई देते हैं।
11. गेरुआ-
यह भी एक संक्रामक बीमारी है जो यूरोमाइसेस फेसिओले के कारण होती है। संक्रमण के आवश्यक दुष्प्रभाव पत्तियों पर दिखाई देते हैं।
वे खाते हैं; पत्तियों पर गोलाकार, सुर्ख भूरे रंग के उभरे हुए धब्बे बनते हैं जिन्हें दाने कहा जाता है। ये दाने अधिकांश भाग में पत्तियों की निचली सतह पर बनते हैं
जबकि आमतौर पर तने और खोल पर कम होते हैं। रोग के अनावश्यक संदूषण के कारण मार्ग की दोनों बाहरी परत पर फुंसियों (धब्बों) की मात्रा बन जाती है जिससे वह नीचे की ओर गिरने लगती है।
सुरक्षित वर्गीकरण का निर्धारण
1. गैस्प उड़द-19, गैस्प उर्द-30, पी.डी.एम.-1 (वसंत ऋतु), यू.जी. 218, पीएस-1, नरेंद्र उर्द-1, डब्ल्यू.बीयू-108, डी.पी.यू. 88-31, आई.पी.यू.- 94-1 (उत्तर), आई.सी.पी.यू. 94-1 (उत्तर),
2. एल.बी.जी.- 17, एल.बी.जी. फाइन मोल्ड के लिए. 402
3. बैक्टीरियल लीफ स्पॉट सिकनेस के लिए कृष्णा, एच. 30 और यूएस-131।
4. एसडीटी 3 लीफ ट्विस्ट सिकनेस के लिए