जीरा की खेती कब और कैसे करें | जीरे की बुवाई कैसे की जाती है?

जीरा की खेती कब और कैसे करें:  ज़ेस्ट फसलों में जीरे का अपना एक अलग ही स्थान है। जीरे का इस्तेमाल कोई भी सब्जी या दाल या फिर कोई भी व्यंजन बनाने में किया जाता है. इसके बिना कई स्वादों का स्वाद फीका सा लगता है। भूना हुआ जीरा छाछ, दही आदि में डालकर खाया जाता है।

जीरा आपके स्वाद को तो बढ़ा देता है, लेकिन सेहत के नजरिए से भी इसका सेवन बेहद फायदेमंद होता है. इसका पौधा सौंफ जैसा लगता है। संस्कृत में इसे जिरक कहा जाता है,

और इसका मतलब है कि जो भोजन के प्रसंस्करण में मदद करता है। यदि इसे उच्च स्तरीय तरीके से विकसित किया जाता है तो इसे बेहतर तरीके से पहुंचाकर बड़ा लाभ प्राप्त किया जा सकता है। आइए जानते हैं जीरे की उन्नत खेती की रणनीति और इस दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि किसान भाई-बहनों को इसके विकास से लाभ मिल सके।

जीरा का हर्बल नाम और पौधे के गुण

जीरा (जड़ी-बूटी का नाम- क्यूमिनम साइमिनम) अपियासी परिवार का एक फूल वाला पौधा है। जीरे को इसी नाम के प्राकृतिक पौधे (जैविक नाम-क्यूमिनम सायमिनम) के बीज के रूप में जाना जाता है।

यह पौधा अजमोद परिवार का एक व्यक्ति है। पौधा 30-50 सेमी (0.98-1.64 फीट) के स्तर तक विकसित होता है और जैविक उत्पादों को कठिन तरीके से एकत्र किया जाता है।

यह नाजुक और चिकनी त्वचा वाला एक वार्षिक फसल वाला शाकाहारी पौधा है। इसके तने में कई शाखाएँ होती हैं और पौधा 20-30 सेमी ऊँचा होता है।

प्रत्येक शाखा की 2-3 उप-शाखाएँ होती हैं और प्रत्येक शाखा समान सीमा लेती है जिससे यह एक छतरी का आकार लेती है।

इसका तना मद्धम गुणवत्ता वाला मद्धम हरे रंग का होता है। इन पर 5-10 सेमी. इसमें तार जैसी नाजुक पत्तियां होती हैं।

इनसे पहले सफेद या हल्के गुलाबी रंग के छोटे-छोटे फूल अंबेल के आकार के होते हैं। प्रत्येक छत्र में 5-7 गर्भ होते हैं।

भारत में जीरे की डिलीवरी कहाँ होती है/जीरे की फसल

देश का 80% से अधिक जीरा गुजरात और राजस्थान के प्रांतों में भरा जाता है।

देश के कुल जीरे का लगभग 28% राजस्थान में पैदा होता है और पूरे राज्य के जीरे का 80% राज्य के पश्चिमी जिले में पैदा होता है।

हालांकि, इसकी विशिष्ट उपज (प्रति हेक्टेयर 380 किलोग्राम) गुजरात के निकटवर्ती क्षेत्र (550 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) की तुलना में काफी कम है।

जीरे में पाए जाने वाले पोषक तत्व और अन्य सप्लीमेंट्स

जीरा ऑक्सीडेंट का जबरदस्त दुश्मन है साथ ही यह जलन कम करने और मांसपेशियों को आराम देने में भी असरदार है। इसमें फाइबर भी पाया जाता है और यह आयरन, कॉपर, कैल्शियम, पोटैशियम, मैंगनीज, जिंक और मैग्नीशियम जैसे खनिजों का भी अच्छा स्रोत है। इसमें विटामिन ई, ए, सी और बी-कॉम्प्लेक्स जैसे पोषक तत्व भी भारी मात्रा में पाए जाते हैं। इसीलिए आयुर्वेद में इसके उपयोग को स्वास्थ्य के लिहाज से सबसे अच्छा बताया गया है।

जीरा और उनके गुणों के और विकसित वर्गीकरण

RZ-19: जीरे की यह किस्म 120-125 दिनों में उम्र बढ़ने के बाद तैयार हो जाती है. इससे प्रति हेक्टेयर 9-11 क्विंटल उत्पादन होता है। इस किस्म में मलत्याग, पपड़ी और कम बीमारियाँ होती हैं।

RZ-209: यह किस्म भी 120-125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके दाने मोटे होते हैं। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 7-8 क्विंटल उपज मिलती है। इस किस्म में खाज और गायन की बीमारी भी कम होती है


GC-4: जीरे की यह किस्म 105-110 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इसके बीज बड़े आकार के होते हैं। इससे 7-9 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। यह किस्म रोग को कम करने के लिए संवेदनशील है।

R Z-223: यह किस्म 110-115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म के जीरे से 6-8 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। यह किस्म मुरझाने वाले संक्रमण से अभेद्य है। इसमें बीज में कितना तेल 3.25 प्रतिशत होता है।

जीरा विकसित करने से पहले ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें

जीरे के विकास का उचित समय नवंबर के मध्य है। इसी तरह जीरे की बुवाई 1 से 25 नवंबर के बीच कर लेनी चाहिए।
छिड़काव तकनीक से जीरा न बोते हुए कल्टीवेटर से 30 सेमी. कालांतर में कॉलम बनाकर समाप्त करना चाहिए।

चूंकि ऐसा करने से जीरे की फसल में पानी देने और खरपतवारों को खत्म करने में सब कुछ अच्छा होता है।
जीरे के विकास के लिए आमतौर पर सूखा और यथोचित ठंडा वातावरण उपयुक्त होता है।

जीरे की अच्छी उपज के लिए मध्यम रूप से फफोलेदार और बीज पकने के चरण में शुष्क जलवायु महत्वपूर्ण है।

जीरे की फसल के लिए, जब जलवायु का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक और 10 डिग्री सेल्सियस से कम होता है, तो जीरे के अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रचुर मात्रा में नमी के कारण फसल पर पपड़ी और जलती हुई बीमारियों के भड़कने के कारण, उच्च जलवायु नमी वाले क्षेत्र इसके विकास के लिए अस्वीकार्य रहते हैं।

अधिक ठंडे क्षेत्रों में जीरे की फसल अच्छी नहीं होती है।

इस तथ्य के बावजूद कि जीरे को मिट्टी की एक विस्तृत श्रृंखला में विकसित किया जा सकता है, हालांकि रेतीली दोमट या दोमट मिट्टी जिसमें बहुत सारे प्राकृतिक पदार्थ और वैध अपशिष्ट होते हैं,

आमतौर पर इसके विकास के लिए उपयुक्त होती है।

जीरे की जल प्रणाली के लिए स्प्रिंकलर तकनीक का उपयोग सर्वोत्तम है। इस वजह से बराबर मात्रा में पानी उपलब्ध कराया जाता है

जीरे की फसल को पूर्वापेक्षा के अनुसार।

पकने के समय जीरा नहीं डालना चाहिए, ऐसा करने से बीज हल्के हो जाते हैं।
कोशिश करें कि जिस खेत में पिछले साल जीरा लगाया गया था,

वहां जीरा न लगाएं, नहीं तो बीमारियां और भड़केंगी।

जीरे के विकास की तकनीक/जीरे का विकास कैसे करें?

सबसे पहले जीरे के विकास के लिए खेत तैयार करें। इसके लिए एक गहरी खांचे मिट्टी पलटने वाली खांचों से तथा कुछ उथली खांचे देशी खांचे या हैरो से करनी चाहिए और खेत को समतल कर लेना चाहिए। इसके बाद 5 से 8 फीट का बिस्तर बना लें। याद रखें कि समान आकार की क्यारियां बनानी चाहिए ताकि रोपण और पानी की व्यवस्था करना मुश्किल न हो।

कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम मात्रा लेकर बीजों को प्रति किलो उपचारित कर ही बोयें। लगातार 30 सेंटीमीटर की दूरी से कतारों में पौधे रोपें। सीड ड्रिल से कॉलम में रोपण प्रभावी ढंग से संभव होना चाहिए।

खाद और खाद

रोपण से 2 से 3 सप्ताह पहले मिट्टी में गाय के उर्वरक खाद को मिलाने से लाभ होता है। खेत में कीड़ों की समस्या होने की दशा में क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत, 20 से 25 किग्रा0 प्रति हैक्टर प्रति हे0 अन्तिम जुताई के समय खेत में डालने से फसल बोने से पूर्व उसकी रोकथाम के लिए सहायक होता है।

कुंआ। याद रहे कि यदि खरीफ की फसल में प्रति हेक्टेयर 10-15 टन गोबर खाद मिला दी जाए तो जीरे की फसल के लिए अतिरिक्त मल की आवश्यकता नहीं होती है।

वैसे भी 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से फराई करने से पहले गाय के गोबर की खाद को खेत में बिखेर कर मिला देना चाहिए।

इसके अलावा जीरे की फसल में 30 किग्रा नत्रजन, 20 किग्रा फॉस्फोरस तथा 15 किग्रा पोटाश खाद प्रति हेक्टेयर की दर से दें। फास्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुआई के अंतिम जुलाई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए। बची हुई नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई के 30 से 35 दिन बाद पानी में डालें।

बाढ़ कब करें

जीरे की बुवाई के बाद हल्की पानी की व्यवस्था करनी चाहिए। जीरा लगाने के 8 से 10 दिन बाद एक और हल्की पानी की व्यवस्था दें ताकि जीरा पूरी तरह से अंकुरित हो सके।

इसके बाद जब भी आवश्यकता हो, 8-10 दिन बाद पुन: हल्की जल व्यवस्था संभव हो जाए। इसके बाद तीन अतिरिक्त जल प्रणालियां दाना बनने तक एक-एक दिन में देनी चाहिए। याद रखें कि जीरे में बीज पकने के समय पानी की व्यवस्था नहीं करनी चाहिए, ऐसा करने से बीज हल्का हो जाता है।

खरपतवार नियंत्रण के उपाय

जीरे की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बिजाई के बाद जल प्रणाली के दूसरे दिन 500 लीटर पानी में 1.0 किग्रा डायनेमिक फिक्सिंग प्रति हैक्टेयर की दर से घोल बनाकर पेडीमेथलीन खरपतवार नाशक दवा का छिड़काव समान रूप से करना चाहिए। 20 दिन बाद जब फसल 25-30 दिन की हो जाए, तब एक खुदाई पूरी कर लेनी चाहिए।

फसल चक्र अपनाना महत्वपूर्ण है

जीरे के बेहतर उत्पादन के लिए फसल की धुरी पर काम करना महत्वपूर्ण है। इसके लिए यदि जीरे की उपज को एक ही खेत में बार-बार न बोया जाए तो इससे मुरझाने की बीमारी अधिक होती है। इसके लिए वैध फसल धुरी को अपनाना चाहिए। इसके लिए बाजरा-जीरा-मूंग-गेहूं-बाजरा-जीरा का तीन वर्षीय फसल पैटर्न लिया जा सकता है।

कब काटना है

जब बीज और पौधे भूरे हो जाएं और उपज पूरी तरह से तैयार हो जाए, तो इसे तुरंत एकत्र कर लेना चाहिए। अनाज को अलग करने के लिए पौधों को पूरी तरह से सुखाया जाना चाहिए और हार्वेस्टर से छानना चाहिए। अनाज को अच्छी तरह सुखाकर ही उसे साफ बोरियों में रखना चाहिए।

वापसी और लाभ

इससे प्राप्त उपज की बात करें तो उस समय प्रति हेक्टेयर जीरे की सामान्य उपज 7-8 क्विंटल होती है। जीरे की खेती में प्रति हेक्टेयर करीब 30 से 35 हजार रुपये खर्च होते हैं। जीरा का भाव 100 रुपये प्रति किलो रहने पर प्रति हेक्टेयर 40 से 45 हजार रुपये का शुद्ध लाभ मिल सकता है।

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